ये रंग-ओ-कैफ़ कहाँ था शबाब से पहले
नज़र कुछ और थी मौज-ए-शराब से पहले
न जाने हाल हो क्या दौर-ए-इज़्तिराब के बा'द
सुकूँ मिला न कभी इज़्तिराब से पहले
वही ग़रीब हैं ख़ाना-ख़राब से अब भी
रवाँ-दवाँ थे जो ख़ाना-ख़राब से पहले
वही है हश्र का आलम अब इंक़लाब के बा'द
जो हश्र उठा था यहाँ इंक़लाब से पहले
मिली है तुझ से तो महसूस हो रही है नज़र
नज़र कहाँ थी तिरे इंतिख़ाब से पहले
तबाह हाल ज़माने को देखिए 'अख़्तर'
नज़र उठाइए जाम-ए-शराब से पहले
ग़ज़ल
ये रंग-ओ-कैफ़ कहाँ था शबाब से पहले
अख़्तर अंसारी अकबराबादी