आसाँ नहीं इंसाफ़ की ज़ंजीर हिलाना
दुनिया को जहाँगीर का दरबार न समझो
अख़तर बस्तवी
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बरसों से इस में फल नहीं आए तो क्या हुआ
साया तो अब भी सेहन के कोहना शजर में है
अख़तर बस्तवी
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कीजिए किस किस से आख़िर ना-शनासी का गिला
जब किसी ने भी निगाह-ए-मो'तबर डाली नहीं
अख़तर बस्तवी
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जिस ने दुनिया भर के ग़म अपनाए थे
उस को दुनिया ने कहा बे-दर्द था
अख़्तर फ़िरोज़
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ऐ जलती रुतो गवाह रहना
हम नंगे पाँव चल रहे हैं
अख़्तर होशियारपुरी
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'अख़्तर' गुज़रते लम्हों की आहट पे यूँ न चौंक
इस मातमी जुलूस में इक ज़िंदगी भी है
अख़्तर होशियारपुरी
अलमारी में तस्वीरें रखता हूँ
अब बचपन और बुढ़ापा एक हुए
अख़्तर होशियारपुरी
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