अचानक हड़बड़ा कर नींद से मैं जाग उट्ठा हूँ
पुराना वाक़िआ है जिस पे हैरत अब हुई है
शारिक़ कैफ़ी
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अजब लहजे में करते थे दर ओ दीवार बातें
मिरे घर को भी शायद मेरी आदत अब हुई है
शारिक़ कैफ़ी
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अजब लहजे में करते थे दर ओ दीवार बातें
मिरे घर को भी शायद मेरी आदत अब हुई है
शारिक़ कैफ़ी
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बहुत भटके तो हम समझे हैं ये बात
बुरा ऐसा नहीं अपना मकाँ भी
शारिक़ कैफ़ी
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बहुत गदला था पानी उस नदी का
मगर मैं अपना चेहरा देख आया
शारिक़ कैफ़ी
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बहुत गदला था पानी उस नदी का
मगर मैं अपना चेहरा देख आया
शारिक़ कैफ़ी
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बहुत हसीं रात है मगर तुम तो सो रहे हो
निकल के कमरे से इक नज़र चाँदनी तो देखो
शारिक़ कैफ़ी
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