मैं उस की चश्म से ऐसा गिरा हूँ
मिरे रोने पे हँसता है मिरा दिल
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
मज्लिस में रात गिर्या-ए-मस्ताँ था तुझ बग़ैर
साग़र भरा शराब का चश्म-ए-पुर-आब था
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
मशरब में तो दुरुस्त ख़राबातियों के है
मज़हब में ज़ाहिदों के नहीं गर रवा शराब
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
मशरब में तो दुरुस्त ख़राबातियों के है
मज़हब में ज़ाहिदों के नहीं गर रवा शराब
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
मस्जिद में सर पटकता है तो जिस के वास्ते
सो तो यहाँ है देख इधर आ ख़ुदा-शनास
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
मस्जिद में सर पटकता है तो जिस के वास्ते
सो तो यहाँ है देख इधर आ ख़ुदा-शनास
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
मस्तों का दिल है शीशा और संग-दिल है साक़ी
अचरज है जो न टूटे पत्थर से आबगीना
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम