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नज़र से जब अकस्ता है मिरा दिल | शाही शायरी
nazar se jab akasta hai mera dil

ग़ज़ल

नज़र से जब अकस्ता है मिरा दिल

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

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नज़र से जब अकस्ता है मिरा दिल
तो जा काकुल में बस्ता है मिरा दिल

मैं उस की चश्म से ऐसा गिरा हूँ
मिरे रोने पे हँसता है मिरा दिल

गया है जब से वो मेरी बग़ल से
उसी की बू में बस्ता है मिरा दिल

ख़रीदार इस के बहतेरे हैं तुम से
न जानो ये कि सस्ता है मिरा दिल

यहाँ तक ग़र्क़ हूँ रोने में 'हातिम'
कि हँसने को तरसता है मिरा दिल