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2 लाइन शायरी शायरी | शाही शायरी

2 लाइन शायरी

22761 शेर

किसू मशरब में और मज़हब में
ज़ुल्म ऐ मेहरबाँ नहीं है दुरुस्त

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम




किया था दिन का वादा रात को आया तो क्या शिकवा
उसे भूला नहीं कहते जो भूला घर में शाम आया

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम




किया था दिन का वादा रात को आया तो क्या शिकवा
उसे भूला नहीं कहते जो भूला घर में शाम आया

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम




कोई बतलाता नहीं आलम में उस के घर की राह
मारता फिरता हूँ अपने सर को दीवारों से आज

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम




कोई है सुर्ख़-पोश कोई ज़र्द-पोश है
आ देख बज़्म में कि हुई है बहार-ए-जाम

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम




कोई है सुर्ख़-पोश कोई ज़र्द-पोश है
आ देख बज़्म में कि हुई है बहार-ए-जाम

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम




कोहकन जाँ-कनी है मुश्किल काम
वर्ना बहतेरे हैं पथर फोड़े

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम