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2 लाइन शायरी शायरी | शाही शायरी

2 लाइन शायरी

22761 शेर

हाजत चराग़ की है कब अंजुमन में दिल के
मानिंद-ए-शम्अ रौशन हर एक उस्तुख़्वाँ है

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम




हाथ आता नहीं बग़ैर नसीब
पाँव फैला के सो हुआ सो हुआ

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम




हाथ आता नहीं बग़ैर नसीब
पाँव फैला के सो हुआ सो हुआ

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम




हाथ में देख कर तिरे मरहम
मेरे सीने का दाग़ हँसता है

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम




'हातिम' उस ज़ालिम के अबरू को न छेड़
हाथ कट जावेगा ऐ नादाँ है तेग़

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम




'हातिम' उस ज़ालिम के अबरू को न छेड़
हाथ कट जावेगा ऐ नादाँ है तेग़

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम




'हातिम' उस ज़ुल्फ़ की तरफ़ मत देख
जान कर क्यूँ बला में फँसता है

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम