जब वो आली-दिमाग़ हँसता है
ग़ुंचा खिलता है बाग़ हँसता है
हाथ में देख कर तिरे मरहम
मेरे सीने का दाग़ हँसता है
क्या हवा फिर गई है गुलशन की
सौत-ए-बुलबुल को ज़ाग़ हँसता है
शम्अ' हर शाम तेरे रोने पर
सुब्ह-दम तक चराग़ हँसता है
शैख़ की देख सूरत-ए-तक़्वा
आज 'हातिम' अयाग़ हँसता है
ग़ज़ल
जब वो आली-दिमाग़ हँसता है
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम