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जब वो आली-दिमाग़ हँसता है | शाही शायरी
jab wo aali-dimagh hansta hai

ग़ज़ल

जब वो आली-दिमाग़ हँसता है

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

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जब वो आली-दिमाग़ हँसता है
ग़ुंचा खिलता है बाग़ हँसता है

हाथ में देख कर तिरे मरहम
मेरे सीने का दाग़ हँसता है

क्या हवा फिर गई है गुलशन की
सौत-ए-बुलबुल को ज़ाग़ हँसता है

शम्अ' हर शाम तेरे रोने पर
सुब्ह-दम तक चराग़ हँसता है

शैख़ की देख सूरत-ए-तक़्वा
आज 'हातिम' अयाग़ हँसता है