बैठा ही रहा सुब्ह से में धूप ढले तक
साया ही समझती रही दीवार मुझे भी
शहज़ाद अहमद
बैठा ही रहा सुब्ह से में धूप ढले तक
साया ही समझती रही दीवार मुझे भी
शहज़ाद अहमद
बस एक लम्हे में क्या कुछ गुज़र गई दिल पर
बहाल होते हुए हम ने एक ज़माना लिया
शहज़ाद अहमद
बस यही होगा कि दीवाना कहेंगे अहल-ए-बज़्म
आप चुप क्यूँ हैं मिरी तर्ज़-ए-नवा ले लीजिए
शहज़ाद अहमद
बस यही होगा कि दीवाना कहेंगे अहल-ए-बज़्म
आप चुप क्यूँ हैं मिरी तर्ज़-ए-नवा ले लीजिए
शहज़ाद अहमद
बे-हुनर हाथ चमकने लगा सूरज की तरह
आज हम किस से मिले आज किसे छू आए
शहज़ाद अहमद
भरपूर नहीं हैं किसी चेहरे के ख़द-ओ-ख़ाल
देखा नहीं वो चाँद जो पूरा नज़र आए
शहज़ाद अहमद