उम्मीद से कम चश्म-ए-ख़रीदार में आए
हम लोग ज़रा देर से बाज़ार में आए
शहरयार
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उम्मीद से कम चश्म-ए-ख़रीदार में आए
हम लोग ज़रा देर से बाज़ार में आए
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उम्र का बाक़ी सफ़र करना है इस शर्त के साथ
धूप देखें तो उसे साए से ताबीर करें
शहरयार
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उम्र का लम्बा हिस्सा कर के दानाई के नाम
हम भी अब ये सोच रहे हैं पागल हो जाएँ
शहरयार
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उम्र का लम्बा हिस्सा कर के दानाई के नाम
हम भी अब ये सोच रहे हैं पागल हो जाएँ
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उम्र-सफ़र जारी है बस ये खेल देखने को
रूह बदन का बोझ कहाँ तक कब तक ढोती है
शहरयार
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उस को किसी के वास्ते बे-ताब देखते
हम भी कभी ये मंज़र-ए-नायाब देखते
शहरयार
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