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उस को किसी के वास्ते बे-ताब देखते | शाही शायरी
usko kisi ke waste be-tab dekhte

ग़ज़ल

उस को किसी के वास्ते बे-ताब देखते

शहरयार

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उस को किसी के वास्ते बे-ताब देखते
हम भी कभी ये मंज़र-ए-नायाब देखते

साहिल की रेत ने हमें वापस बुला लिया
वर्ना ज़रूर हल्क़ा-ए-गिर्दाब देखते

बारिश का लुत्फ़ बंद मकानों में कुछ नहीं
बाहर निकलते घर से तो सैलाब देखते

आती किसी को रास शहादत 'हुसैन' की
दुनिया में हम किसी को तो सैराब देखते

रातों को जागने के सिवा और क्या किया
आँखें अगर मिली थीं कोई ख़्वाब देखते