तू ने कब इश्क़ में अच्छा बुरा सोचा 'सरवर'
कैसे मुमकिन है कि तेरा बुरा अंजाम न हो
सरवर आलम राज़
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अब तो सँवारने के लिए हिज्र भी नहीं
सारा वबाल ले के ग़ज़ल कर दिया गया
सरवत ज़ेहरा
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बस एक बार याद ने तुम्हारा साथ छू लिया
फिर इस के बाद तो कई जमाल जागते रहे
सरवत ज़ेहरा
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बस एक बार याद ने तुम्हारा साथ छू लिया
फिर इस के बाद तो कई जमाल जागते रहे
सरवत ज़ेहरा
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बिंत-ए-हव्वा हूँ मैं ये मिरा जुर्म है
और फिर शाएरी तो कड़ा जुर्म है
सरवत ज़ेहरा
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बिंत-ए-हव्वा हूँ मैं ये मिरा जुर्म है
और फिर शाएरी तो कड़ा जुर्म है
सरवत ज़ेहरा
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बिंत-ए-हव्वा हूँ मैं ये मिरा जुर्म है
और फिर शाएरी तो कड़ा जुर्म है
सरवत ज़ेहरा
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