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फिर आस दे के आज को कल कर दिया गया | शाही शायरी
phir aas de ke aaj ko kal kar diya gaya

ग़ज़ल

फिर आस दे के आज को कल कर दिया गया

सरवत ज़ेहरा

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फिर आस दे के आज को कल कर दिया गया
होंटों के बीच बात को शल कर दिया गया

सदियों का फोक जिस्म सँभाले तो किस तरह
जब उम्र को निचोड़ के पल कर दिया गया

अब तो सँवारने के लिए हिज्र भी नहीं
सारा वबाल ले के ग़ज़ल कर दिया गया

मुझ को मिरी मजाल से ज़ियादा जुनूँ दिया
धड़कन की लै को साज़-ए-अजल कर दिया गया

कैसे बुझाएँ कौन बुझाए बुझे भी क्यूँ
इस आग को तो ख़ून में हल कर दिया गया