कभी सोचूँ कि ख़ुद मैं लौट आऊँ
कभी सोचूँ कि ऐसा क्यूँ करूँ मैं
ऐन इरफ़ान
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करता है कार-ए-रौशनी मुझ को जला के दिन
करती है कार-ए-तीरगी मुझ को बुझा के रात
ऐन इरफ़ान
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मेरी तरफ़ सभी कि निगाहें थीं और मैं
जिस कश्मकश में सब थे उसी कश्मकश में था
ऐन इरफ़ान
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मिरा वजूद जो पत्थर दिखाई देता है
तमाम उम्र की शीशागरी का हासिल है
ऐन इरफ़ान
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तिश्नगी पीने की शब थी
आबजू होने का दिन था
ऐन इरफ़ान
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ये कौन वक़्त की सूरत मुझे बदलता है
ये क्या किसी के लिए कुछ हूँ कुछ किसी के लिए
ऐन सलाम
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आज भी उस के मिरे बीच है दुनिया हाइल
आज भी उस के मिरे बीच की मुश्किल है वही
ऐन ताबिश
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