ख़्वाब के फूलों की ताबीरें कहानी हो गईं
ख़ून ठंडा पड़ गया आँखें पुरानी हो गईं
जिस का चेहरा था चमकते मौसमों की आरज़ू
उस की तस्वीरें भी औराक़-ए-ख़िज़ानी हो गईं
दिल भर आया काग़ज़-ए-ख़ाली की सूरत देख कर
जिन को लिखना था वो सब बातें ज़बानी हो गईं
जो मुक़द्दर था उसे तो रोकना बस में न था
उन का क्या करते जो बातें ना-गहानी हो गईं
रह गया 'मुश्ताक़' दिल में रंग-ए-याद-ए-रफ़्तगाँ
फूल महँगे हो गए क़ब्रें पुरानी हो गईं
ग़ज़ल
ख़्वाब के फूलों की ताबीरें कहानी हो गईं
अहमद मुश्ताक़