मिरी वफ़ा है मिरे मुँह पे हाथ रक्खे हुए
तू सोचता है कि कुछ भी नहीं समझता मैं
अहमद कामरान
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मुझ पे तस्वीर लगा दी गई है
क्या मैं दीवार दिखाई दिया हूँ
अहमद कामरान
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पाँव बाँधे हैं वफ़ा से जब ने
तेज़-रफ़्तार दिखाई दिया हूँ
अहमद कामरान
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रास आएगी मोहब्बत उस को
जिस से होते नहीं वादे पूरे
अहमद कामरान
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तू ने ऐ इश्क़ ये सोचा कि तिरा क्या होगा
तेरे सर से मैं अगर हाथ उठा लेता हूँ
अहमद कामरान
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ऐन मुमकिन है कि बीनाई मुझे धोका दे
ये जो शबनम है शरारा भी तो हो सकता है
अहमद ख़याल
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बस चंद लम्हे पेश-तर वो पाँव धो के पल्टा है
और नूर का सैलाब सा इस आबजू में आ गया
अहमद ख़याल
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