सभी कहें मिरे ग़म-ख़्वार के अलावा भी
कोई तो बात करूँ यार के अलावा भी
बहुत से ऐसे सितमगर थे अब जो याद नहीं
किसी हबीब-ए-दिल-आज़ार के अलावा भी
ये क्या कि तुम भी सर-ए-राह हाल पूछते हो
कभी मिलो हमें बाज़ार के अलावा भी
उजाड़ घर में ये ख़ुशबू कहाँ से आई है
कोई तो है दर-ओ-दीवार के अलावा भी
सो देख कर तिरे रुख़्सार ओ लब यक़ीं आया
कि फूल खिलते हैं गुलज़ार के अलावा भी
कभी 'फ़राज़' से आ कर मिलो जो वक़्त मिले
ये शख़्स ख़ूब है अशआर के अलावा भी
ग़ज़ल
सभी कहें मिरे ग़म-ख़्वार के अलावा भी
अहमद फ़राज़