इक रात मैं सो नहीं सका था
और ख़्वाब भी देखना पड़ा था
दिल इतना क्यूँ धड़क रहा है
मैं किस की नज़र में आ गया था
जैसा भी ग़लत सही मैं हूँ, हूँ
जैसा भी ग़लत सही मैं था, था
कमरे में आग लग गई थी
दिल जब किसी ध्यान में लगा था
वैसा ही ख़राब शख़्स हूँ मैं
जैसा कोई छोड़ कर गया था
दिल की मसनद पे बैठ कर इश्क़
मुझ ऐसे को सँवारता था
ग़ज़ल
इक रात मैं सो नहीं सका था
अहमद अता