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मैं न होने से हुआ या'नी बड़ी तक़्सीर की | शाही शायरी
main na hone se hua yani baDi taqsir ki

ग़ज़ल

मैं न होने से हुआ या'नी बड़ी तक़्सीर की

अहमद अता

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मैं न होने से हुआ या'नी बड़ी तक़्सीर की
कीमिया-गर ने मिरी मिटी मगर इक्सीर की

उन दिनों आया था तू जब हौसला दरकार था
ख़ैर हो तेरी कि तू ने तीरगी तनवीर की

और सोचा और सोचा और सोचा और फिर
उस ख़ुदा-ए-लम-यज़ल ने और ही तक़दीर की

आशिक़ाँ सुनिए ब-गोश-ए-होश मेरी दास्ताँ
दास्ताँ कुछ भी नहीं यारों ने बस तश्हीर की

मैं तो मिट्टी हो रहा था इश्क़ में लेकिन 'अता'
आ गई मुझ में कहीं से बे-दिमाग़ी 'मीर' की