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2 लाइन शायरी शायरी | शाही शायरी

2 लाइन शायरी

22761 शेर

गो हरम के रास्ते से वो पहुँच गए ख़ुदा तक
तिरी रहगुज़र से जाते तो कुछ और बात होती

आग़ा हश्र काश्मीरी




गो हवा-ए-गुलसिताँ ने मिरे दिल की लाज रख ली
वो नक़ाब ख़ुद उठाते तो कुछ और बात होती

आग़ा हश्र काश्मीरी




गोया तुम्हारी याद ही मेरा इलाज है
होता है पहरों ज़िक्र तुम्हारा तबीब से

आग़ा हश्र काश्मीरी




हश्र में इंसाफ़ होगा बस यही सुनते रहो
कुछ यहाँ होता रहा है कुछ वहाँ हो जाएगा

आग़ा हश्र काश्मीरी




निकहत-ए-साग़र-ए-गुल बन के उड़ा जाता हूँ
लिए जाता है कहाँ बादा-ए-सर-जोश मुझे

आग़ा हश्र काश्मीरी




सब कुछ ख़ुदा से माँग लिया तुझ को माँग कर
उठते नहीं हैं हाथ मिरे इस दुआ के बाद

आग़ा हश्र काश्मीरी




याद में तेरी जहाँ को भूलता जाता हूँ मैं
भूलने वाले कभी तुझ को भी याद आता हूँ मैं

आग़ा हश्र काश्मीरी