जोखम ऐ मर्दुम-ए-दीदा है समझ के रोना
डूब भी जाते हैं दरिया में नहाने वाले
आग़ा हज्जू शरफ़
कभी जो यार को देखा तो ख़्वाब में देखा
मिरी मुराद भी आई तो मुस्तआर आई
आग़ा हज्जू शरफ़
कहा जो मैं ने मेरे दिल की इक तस्वीर खिंचवा दो
मँगा कर रख दिया इक शीशा चकनाचूर पहलू में
आग़ा हज्जू शरफ़
ख़ल्वत-सरा-ए-यार में पहुँचेगा क्या कोई
वो बंद-ओ-बस्त है कि हवा का गुज़र नहीं
आग़ा हज्जू शरफ़
क्या बुझाएगा मिरे दिल की लगी वो शोला-रू
दौड़ता है जो लगा के आग पानी के लिए
आग़ा हज्जू शरफ़
क्या ख़ुदा हैं जो बुलाएँ तो वो आ ही न सकें
हम ये कहते हैं कि आ जाएँ तो जा ही न सकें
आग़ा हज्जू शरफ़
लिक्खा है जो तक़दीर में होगा वही ऐ दिल
शर्मिंदा न करना मुझे तू दस्त-ए-दुआ का
आग़ा हज्जू शरफ़