मैं तो अपनी जान पे खेल के प्यार की बाज़ी जीत गया
क़ातिल हार गए जो अब तक ख़ून के छींटे धोते हैं
अफ़ज़ल परवेज़
तुम उन को सज़ा क्यूँ नहीं देते कि जिन्हों ने
मुजरिम का ज़मीर और सुकूँ लूट लिया है
अफ़ज़ल परवेज़
आमद आमद है तिरे शहर में किस वहशी की
बंद रहने की जो ताकीद है बाज़ारों को
आग़ा हज्जू शरफ़
बे-वफ़ा तुम बा-वफ़ा मैं देखिए होता है क्या
ग़ैज़ में आने को तुम हो मुझ को प्यार आने को है
आग़ा हज्जू शरफ़
देखने भी जो वो जाते हैं किसी घायल को
इक नमक-दाँ में नमक पीस के भर लेते हैं
आग़ा हज्जू शरफ़
दिल में आमद आमद उस पर्दा-नशीं की जब सुनी
दम को जल्दी जल्दी मैं ने जिस्म से बाहर किया
आग़ा हज्जू शरफ़
दो वक़्त निकलने लगी लैला की सवारी
दिलचस्प हुआ क़ैस के रहने से बन ऐसा
आग़ा हज्जू शरफ़