ख़ाली हुआ गिलास नशा सर में आ गया
दरिया उतर गया तो समुंदर में आ गया
अफ़ज़ाल नवेद
कि जैसे ख़ुद से मुलाक़ात हो नहीं पाती
जहाँ से उट्ठा हुआ है ख़मीर खींचता हूँ
अफ़ज़ाल नवेद
मैं ने बचपन की ख़ुशबू-ए-नाज़ुक
एक तितली के संग उड़ाई थी
अफ़ज़ाल नवेद
रहती है शब-ओ-रोज़ में बारिश सी तिरी याद
ख़्वाबों में उतर जाती हैं घनघोर सी आँखें
अफ़ज़ाल नवेद
रख लिए रौज़न-ए-ज़िंदाँ पे परिंदे सारे
जो न वाँ रखने थे दीवान में रख छोड़े हैं
अफ़ज़ाल नवेद
सो जाती है बस्ती तो मकाँ पिछली गली में
तन्हा खड़ा रहता है मकीनों से निकल कर
अफ़ज़ाल नवेद
अलख जमाए धूनी रमाए ध्यान लगाए रहते हैं
प्यार हमारा मस्लक है हम प्रेम-गुरु के चेले हैं
अफ़ज़ल परवेज़