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सय्यद आबिद अली आबिद शायरी | शाही शायरी

सय्यद आबिद अली आबिद शेर

28 शेर

कहते थे तुझी को जान अपनी
और तेरे बग़ैर भी जिए हैं

सय्यद आबिद अली आबिद




कभी मैं जुरअत-ए-इज़हार-ए-मुद्दआ तो करूँ
कोई जवाज़ तो हो लुत्फ़-ए-बे-सबब के लिए

सय्यद आबिद अली आबिद




जल्वा-ए-यार से क्या शिकवा-ए-बेजा कीजे
शौक़-ए-दीदार का आलम वो कहाँ है कि जो था

सय्यद आबिद अली आबिद




इश्क़ की तर्ज़-ए-तकल्लुम वही चुप है कि जो थी
लब-ए-ख़ुश-गू-ए-हवस महव-ए-बयाँ है कि जो था

सय्यद आबिद अली आबिद




इक दिन उस ने नैन मिला के शर्मा के मुख मोड़ा था
तब से सुंदर सुंदर सपने मन को घेरे फिरते हैं

सय्यद आबिद अली आबिद




ग़म-ए-दौराँ ग़म-ए-जानाँ का निशाँ है कि जो था
वस्फ़-ए-ख़ूबाँ ब-हदीस-ए-दिगराँ है कि जो था

सय्यद आबिद अली आबिद




ग़म के तारीक उफ़ुक़ पर 'आबिद'
कुछ सितारे सर-ए-मिज़्गाँ गुज़रे

सय्यद आबिद अली आबिद




दर-ए-इख़्लास की दहलीज़ पर ख़म हूँ 'आबिद'
एक जीने का सलीक़ा दिल-ए-बेबाक में है

सय्यद आबिद अली आबिद




दम-ए-रुख़्सत वो चुप रहे 'आबिद'
आँख में फैलता गया काजल

सय्यद आबिद अली आबिद