चाँद सितारों से क्या पूछूँ कब दिन मेरे फिरते हैं
वो तो बिचारे ख़ुद हैं भिकारी डेरे डेरे फिरते हैं
जिन गलियों में हम ने सुख की सेज पे रातें काटी थीं
उन गलियों में ब्याकुल हो कर साँझ सवेरे फिरते हैं
रूप-सरूप की जोत जगाना उस नगरी में जोखम है
चारों खूँट बगूले बन कर घोर अंधेरे फिरते हैं
जिन के श्याम-बरन साए में मेरा मन सुस्ताया था
अब तक आँखों के आगे वो बाल घनेरे फिरते हैं
कोई हमें भी ये समझा दो उन पर दिल क्यूँ रीझ गया
देखी चितवन बाँकी छब वाले बहतेरे फिरते हैं
इक दिन उस ने नैन मिला के शर्मा के मुख मोड़ा था
तब से सुंदर सुंदर सपने मन को घेरे फिरते हैं
उस नगरी के बाग़ और मन की यारो लैला न्यारी है
पंछी अपने सर पे उठा कर अपने बसेरे फिरते हैं
लोग तो दामन सी लेते हैं जैसे हो जी लेते हैं
'आबिद' हम दीवाने हैं जो बाल बिखेरे फिरते हैं
ग़ज़ल
चाँद सितारों से क्या पूछूँ कब दिन मेरे फिरते हैं
सय्यद आबिद अली आबिद