ऐ इल्तिफ़ात-ए-यार मुझे सोचने तो दे
मरने का है मक़ाम या जीने का महल
सय्यद आबिद अली आबिद
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ऐ इल्तिफ़ात-ए-यार मुझे सोचने तो दे
मरने का है मक़ाम या जीने का महल
सय्यद आबिद अली आबिद