EN اردو
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़ शायरी | शाही शायरी

शेख़ इब्राहीम ज़ौक़ शेर

69 शेर

बजा कहे जिसे आलम उसे बजा समझो
ज़बान-ए-ख़ल्क़ को नक़्क़ारा-ए-ख़ुदा समझो

शेख़ इब्राहीम ज़ौक़




आदमिय्यत और शय है इल्म है कुछ और शय
कितना तोते को पढ़ाया पर वो हैवाँ ही रहा

शेख़ इब्राहीम ज़ौक़




बाक़ी है दिल में शैख़ के हसरत गुनाह की
काला करेगा मुँह भी जो दाढ़ी सियाह की

शेख़ इब्राहीम ज़ौक़




बा'द रंजिश के गले मिलते हुए रुकता है दिल
अब मुनासिब है यही कुछ मैं बढ़ूँ कुछ तू बढ़े

शेख़ इब्राहीम ज़ौक़




अज़ीज़ो इस को न घड़ियाल की सदा समझो
ये उम्र-ए-रफ़्ता की अपनी सदा-ए-पा समझो

शेख़ इब्राहीम ज़ौक़




ऐ 'ज़ौक़' वक़्त नाले के रख ले जिगर पे हाथ
वर्ना जिगर को रोएगा तू धर के सर पे हाथ

शेख़ इब्राहीम ज़ौक़




ऐ 'ज़ौक़' तकल्लुफ़ में है तकलीफ़ सरासर
आराम में है वो जो तकल्लुफ़ नहीं करता

save trouble, in formality, zauq nothing else can be
at ease he then remains he who, eschews formality

शेख़ इब्राहीम ज़ौक़




ऐ 'ज़ौक़' देख दुख़्तर-ए-रज़ को न मुँह लगा
छुटती नहीं है मुँह से ये काफ़र लगी हुई

शेख़ इब्राहीम ज़ौक़




ऐ शम्अ तेरी उम्र-ए-तबीई है एक रात
हँस कर गुज़ार या इसे रो कर गुज़ार दे

शेख़ इब्राहीम ज़ौक़