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शेख़ इब्राहीम ज़ौक़ शायरी | शाही शायरी

शेख़ इब्राहीम ज़ौक़ शेर

69 शेर

हम नहीं वो जो करें ख़ून का दावा तुझ पर
बल्कि पूछेगा ख़ुदा भी तो मुकर जाएँगे

शेख़ इब्राहीम ज़ौक़




है ऐन-ए-वस्ल में भी मिरी चश्म सू-ए-दर
लपका जो पड़ गया है मुझे इंतिज़ार का

शेख़ इब्राहीम ज़ौक़




गुल उस निगह के ज़ख़्म-रसीदों में मिल गया
ये भी लहू लगा के शहीदों में मिल गया

शेख़ इब्राहीम ज़ौक़




गया शैतान मारा एक सज्दा के न करने में
अगर लाखों बरस सज्दे में सर मारा तो क्या मारा

शेख़ इब्राहीम ज़ौक़




एक पत्थर पूजने को शैख़ जी काबे गए
'ज़ौक़' हर बुत क़ाबिल-ए-बोसा है इस बुत-ख़ाने में

शेख़ इब्राहीम ज़ौक़




एक आँसू ने डुबोया मुझ को उन की बज़्म में
बूँद भर पानी से सारी आबरू पानी हुई

a single tear caused my fall in her company
just a drop of water drowned my dignity

शेख़ इब्राहीम ज़ौक़