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साहिर लुधियानवी शायरी | शाही शायरी

साहिर लुधियानवी शेर

66 शेर

हम ग़म-ज़दा हैं लाएँ कहाँ से ख़ुशी के गीत
देंगे वही जो पाएँगे इस ज़िंदगी से हम

साहिर लुधियानवी




हम जुर्म-ए-मोहब्बत की सज़ा पाएँगे तन्हा
जो तुझ से हुई हो वो ख़ता साथ लिए जा

साहिर लुधियानवी




हम से अगर है तर्क-ए-तअल्लुक़ तो क्या हुआ
यारो कोई तो उन की ख़बर पूछते चलो

साहिर लुधियानवी




हम तो समझे थे कि हम भूल गए हैं उन को
क्या हुआ आज ये किस बात पे रोना आया

साहिर लुधियानवी




हमीं से रंग-ए-गुलिस्ताँ हमीं से रंग-ए-बहार
हमीं को नज़्म-ए-गुलिस्ताँ पे इख़्तियार नहीं

साहिर लुधियानवी




हर एक दौर का मज़हब नया ख़ुदा लाया
करें तो हम भी मगर किस ख़ुदा की बात करें

साहिर लुधियानवी




हर-चंद मिरी क़ुव्वत-ए-गुफ़्तार है महबूस
ख़ामोश मगर तब-ए-ख़ुद-आरा नहीं होती

साहिर लुधियानवी




हज़ार बर्क़ गिरे लाख आँधियाँ उट्ठें
वो फूल खिल के रहेंगे जो खिलने वाले हैं

साहिर लुधियानवी




इक शहंशाह ने दौलत का सहारा ले कर
हम ग़रीबों की मोहब्बत का उड़ाया है मज़ाक़

साहिर लुधियानवी