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कभी ख़ुद पे कभी हालात पे रोना आया | शाही शायरी
kabhi KHud pe kabhi haalat pe rona aaya

ग़ज़ल

कभी ख़ुद पे कभी हालात पे रोना आया

साहिर लुधियानवी

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कभी ख़ुद पे कभी हालात पे रोना आया
बात निकली तो हर इक बात पे रोना आया

हम तो समझे थे कि हम भूल गए हैं उन को
क्या हुआ आज ये किस बात पे रोना आया

किस लिए जीते हैं हम किस के लिए जीते हैं
बारहा ऐसे सवालात पे रोना आया

कौन रोता है किसी और की ख़ातिर ऐ दोस्त
सब को अपनी ही किसी बात पे रोना आया