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क़तील शिफ़ाई शायरी | शाही शायरी

क़तील शिफ़ाई शेर

75 शेर

'क़तील' अब दिल की धड़कन बन गई है चाप क़दमों की
कोई मेरी तरफ़ आता हुआ महसूस होता है

क़तील शिफ़ाई




निकल कर दैर-ओ-काबा से अगर मिलता न मय-ख़ाना
तो ठुकराए हुए इंसाँ ख़ुदा जाने कहाँ जाते

if on leaving temple,mosque no tavern were be found
what refuge would outcasts find? this only God would know

क़तील शिफ़ाई




निकल कर दैर-ओ-काबा से अगर मिलता न बुत-ख़ाना
तो ठुकराए हुए इंसाँ ख़ुदा जाने कहाँ जाते

क़तील शिफ़ाई




न जाने कौन सी मंज़िल पे आ पहुँचा है प्यार अपना
न हम को ए'तिबार अपना न उन को ए'तिबार अपना

क़तील शिफ़ाई




न छाँव करने को है वो आँचल न चैन लेने को हैं वो बाँहें
मुसाफ़िरों के क़रीब आ कर हर इक बसेरा पलट गया है

क़तील शिफ़ाई




मुझ से तू पूछने आया है वफ़ा के मअ'नी
ये तिरी सादा-दिली मार न डाले मुझ को

क़तील शिफ़ाई




मुफ़्लिस के बदन को भी है चादर की ज़रूरत
अब खुल के मज़ारों पे ये एलान किया जाए

क़तील शिफ़ाई




मेरे ब'अद वफ़ा का धोका और किसी से मत करना
गाली देगी दुनिया तुझ को सर मेरा झुक जाएगा

क़तील शिफ़ाई




मत आइयो तुम शहर में बन बन नाचते मोर
निरत के दुश्मन सब यहाँ क्या हाकिम क्या चोर

क़तील शिफ़ाई