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क़तील शिफ़ाई शायरी | शाही शायरी

क़तील शिफ़ाई शेर

75 शेर

अब जिस के जी में आए वही पाए रौशनी
हम ने तो दिल जला के सर-ए-आम रख दिया

whoever so desires may now partake of its heat
for I have set my heart afire and left it on the street

क़तील शिफ़ाई




आया ही था अभी मिरे लब पे वफ़ा का नाम
कुछ दोस्तों ने हाथ में पत्थर उठा लिए

क़तील शिफ़ाई




आख़री हिचकी तिरे ज़ानूँ पे आए
मौत भी मैं शाइराना चाहता हूँ

क़तील शिफ़ाई




किस तरह अपनी मोहब्बत की मैं तकमील करूँ
ग़म-ए-हस्ती भी तो शामिल है ग़म-ए-यार के साथ

क़तील शिफ़ाई




मैं घर से तेरी तमन्ना पहन के जब निकलूँ
बरहना शहर में कोई नज़र न आए मुझे

क़तील शिफ़ाई




मैं अपने दिल से निकालूँ ख़याल किस किस का
जो तू नहीं तो कोई और याद आए मुझे

क़तील शिफ़ाई




माना जीवन में औरत इक बार मोहब्बत करती है
लेकिन मुझ को ये तो बता दे क्या तू औरत ज़ात नहीं

क़तील शिफ़ाई




ले मेरे तजरबों से सबक़ ऐ मिरे रक़ीब
दो-चार साल उम्र में तुझ से बड़ा हूँ मैं

क़तील शिफ़ाई




क्यूँ शरीक-ए-ग़म बनाते हो किसी को ऐ 'क़तील'
अपनी सूली अपने काँधे पर उठाओ चुप रहो

क़तील शिफ़ाई