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मोमिन ख़ाँ मोमिन शायरी | शाही शायरी

मोमिन ख़ाँ मोमिन शेर

60 शेर

नासेहा दिल में तो इतना तू समझ अपने कि हम
लाख नादाँ हुए क्या तुझ से भी नादाँ होंगे

मोमिन ख़ाँ मोमिन




न करो अब निबाह की बातें
तुम को ऐ मेहरबान देख लिया

मोमिन ख़ाँ मोमिन




मोमिन मैं अपने नालों के सदक़े कि कहते हैं
उस को भी आज नींद न आई तमाम शब

मोमिन ख़ाँ मोमिन




'मोमिन' ख़ुदा के वास्ते ऐसा मकाँ न छोड़
दोज़ख़ में डाल ख़ुल्द को कू-ए-बुताँ न छोड़

for sake of God! momin from leaving this house refrain
let paradise to hell consign, leave not the idol's lane

मोमिन ख़ाँ मोमिन




मेरे तग़ईर-ए-रंग को मत देख
तुझ को अपनी नज़र न हो जाए

मोमिन ख़ाँ मोमिन




मज्लिस में मिरे ज़िक्र के आते ही उठे वो
बदनामी-ए-उश्शाक़ का एज़ाज़ तो देखो

मोमिन ख़ाँ मोमिन




मैं भी कुछ ख़ुश नहीं वफ़ा कर के
तुम ने अच्छा किया निबाह न की

मोमिन ख़ाँ मोमिन




महशर में पास क्यूँ दम-ए-फ़रियाद आ गया
रहम उस ने कब किया था कि अब याद आ गया

मोमिन ख़ाँ मोमिन




माँगा करेंगे अब से दुआ हिज्र-ए-यार की
आख़िर तो दुश्मनी है असर को दुआ के साथ

to be parted from my dearest I will pray now hence
as after all prayers bear enmity with consequence

मोमिन ख़ाँ मोमिन