कल तुम जो बज़्म-ए-ग़ैर में आँखें चुरा गए
खोए गए हम ऐसे कि अग़्यार पा गए
मोमिन ख़ाँ मोमिन
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किस पे मरते हो आप पूछते हैं
मुझ को फ़िक्र-ए-जवाब ने मारा
मोमिन ख़ाँ मोमिन
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किसी का हुआ आज कल था किसी का
न है तू किसी का न होगा किसी का
मोमिन ख़ाँ मोमिन
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कुछ क़फ़स में इन दिनों लगता है जी
आशियाँ अपना हुआ बर्बाद क्या
मोमिन ख़ाँ मोमिन
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क्या जाने क्या लिखा था उसे इज़्तिराब में
क़ासिद की लाश आई है ख़त के जवाब में
मोमिन ख़ाँ मोमिन
ले शब-ए-वस्ल-ए-ग़ैर भी काटी
तू मुझे आज़माएगा कब तक
मोमिन ख़ाँ मोमिन
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