EN اردو
मोमिन ख़ाँ मोमिन शायरी | शाही शायरी

मोमिन ख़ाँ मोमिन शेर

60 शेर

कल तुम जो बज़्म-ए-ग़ैर में आँखें चुरा गए
खोए गए हम ऐसे कि अग़्यार पा गए

मोमिन ख़ाँ मोमिन




किस पे मरते हो आप पूछते हैं
मुझ को फ़िक्र-ए-जवाब ने मारा

मोमिन ख़ाँ मोमिन




किसी का हुआ आज कल था किसी का
न है तू किसी का न होगा किसी का

मोमिन ख़ाँ मोमिन




कुछ क़फ़स में इन दिनों लगता है जी
आशियाँ अपना हुआ बर्बाद क्या

मोमिन ख़ाँ मोमिन




क्या जाने क्या लिखा था उसे इज़्तिराब में
क़ासिद की लाश आई है ख़त के जवाब में

मोमिन ख़ाँ मोमिन




ले शब-ए-वस्ल-ए-ग़ैर भी काटी
तू मुझे आज़माएगा कब तक

मोमिन ख़ाँ मोमिन