सब्र वहशत-असर न हो जाए
कहीं सहरा भी घर न हो जाए
रश्क-ए-पैग़ाम है इनाँ-कश-ए-दिल
नामा-बर राहबर न हो जाए
देखो मत देखियो कि आईना
ग़श तुम्हें देख कर न हो जाए
हिज्र-ए-पर्दा-नशीं में मरते हैं
ज़िंदगी पर्दा-ए-दर न हो जाए
कसरत-ए-सज्दा से वो नक़्श-ए-क़दम
कहीं पामाल-ए-सर न हो जाए
मेरे तग़ईर-ए-रंग को मत देख
तुझ को अपनी नज़र न हो जाए
मेरे आँसू न पोंछना देखो
कहीं दामान तर न हो जाए
बात नासेह से करते डरता हूँ
कि फ़ुग़ाँ बे-असर न हो जाए
ऐ क़यामत न आइयो जब तक
वो मिरी गोर पर न हो जाए
माना-ए-ज़ुल्म है तग़ाफ़ुल-ए-यार
बख़्त-ए-बद को ख़बर न हो जाए
ग़ैर से बे-हिजाब मिलते हो
शब-ए-आशिक़ सहर न हो जाए
रश्क-ए-दुश्मन का फ़ाएदा मालूम
मुफ़्त जी का ज़रर न हो जाए
ऐ दिल आहिस्ता आह-ए-ताब-शिकन
देख टुकड़े जिगर न हो जाए
'मोमिन' ईमाँ क़ुबूल दिल से मुझे
वो बुत आज़ुर्दा गर न हो जाए
ग़ज़ल
सब्र वहशत-असर न हो जाए
मोमिन ख़ाँ मोमिन