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मोमिन ख़ाँ मोमिन शायरी | शाही शायरी

मोमिन ख़ाँ मोमिन शेर

60 शेर

दीदा-ए-हैराँ ने तमाशा किया
देर तलक वो मुझे देखा किया

मोमिन ख़ाँ मोमिन




आप की कौन सी बढ़ी इज़्ज़त
मैं अगर बज़्म में ज़लील हुआ

मोमिन ख़ाँ मोमिन




एजाज़-ए-जाँ-दही है हमारे कलाम को
ज़िंदा किया है हम ने मसीहा के नाम को

life-bestowing miracles my poetry can claim
glory I have now restored to the Messiah's name

मोमिन ख़ाँ मोमिन




ग़ैरों पे खुल न जाए कहीं राज़ देखना
मेरी तरफ़ भी ग़म्ज़ा-ए-ग़म्माज़ देखना

मोमिन ख़ाँ मोमिन




गो आप ने जवाब बुरा ही दिया वले
मुझ से बयाँ न कीजे अदू के पयाम को

though you may have replied to him as rudely as you claim
don't tell me what was in my rival's message, just the same

मोमिन ख़ाँ मोमिन




गो कि हम सफ़्हा-ए-हस्ती पे थे एक हर्फ़-ए-ग़लत
लेकिन उठ्ठे भी तो इक नक़्श बिठा कर उठे

मोमिन ख़ाँ मोमिन




हँस हँस के वो मुझ से ही मिरे क़त्ल की बातें
इस तरह से करते हैं कि गोया न करेंगे

मोमिन ख़ाँ मोमिन




हाल दिल यार को लिक्खूँ क्यूँकर
हाथ दिल से जुदा नहीं होता

मोमिन ख़ाँ मोमिन




हाल-ए-दिल यार को लिखूँ क्यूँकर
हाथ दिल से जुदा नहीं होता

मोमिन ख़ाँ मोमिन