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मोमिन ख़ाँ मोमिन शायरी | शाही शायरी

मोमिन ख़ाँ मोमिन शेर

60 शेर

उस नक़्श-ए-पा के सज्दे ने क्या क्या किया ज़लील
मैं कूचा-ए-रक़ीब में भी सर के बल गया

bowing to her footsteps brought me shame I dread
I went to my rival's street standing on my head

मोमिन ख़ाँ मोमिन




वो आए हैं पशेमाँ लाश पर अब
तुझे ऐ ज़िंदगी लाऊँ कहाँ से

मोमिन ख़ाँ मोमिन




वो जो हम में तुम में क़रार था तुम्हें याद हो कि न याद हो
वही यानी वादा निबाह का तुम्हें याद हो कि न याद हो

the love that 'tween us used to be, you may, may not recall
those promises of constancy, you may, may not recall

मोमिन ख़ाँ मोमिन




हाल दिल यार को लिक्खूँ क्यूँकर
हाथ दिल से जुदा नहीं होता

मोमिन ख़ाँ मोमिन




अब शोर है मिसाल-ए-जूदी इस ख़िराम को
यूँ कौन जानता था क़यामत के नाम को

मोमिन ख़ाँ मोमिन




बहर-ए-अयादत आए वो लेकिन क़ज़ा के साथ
दम ही निकल गया मिरा आवाज़-ए-पा के साथ

मोमिन ख़ाँ मोमिन




बे-ख़ुद थे ग़श थे महव थे दुनिया का ग़म न था
जीना विसाल में भी तो हिज्राँ से कम न था

मोमिन ख़ाँ मोमिन




चारा-ए-दिल सिवाए सब्र नहीं
सो तुम्हारे सिवा नहीं होता

मोमिन ख़ाँ मोमिन




चल दिए सू-ए-हरम कू-ए-बुताँ से 'मोमिन'
जब दिया रंज बुतों ने तो ख़ुदा याद आया

from the streets of idols fair
to the mosque did I repai

मोमिन ख़ाँ मोमिन