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मोमिन ख़ाँ मोमिन शायरी | शाही शायरी

मोमिन ख़ाँ मोमिन शेर

60 शेर

हाथ टूटें मैं ने गर छेड़ी हों ज़ुल्फ़ें आप की
आप के सर की क़सम बाद-ए-सबा थी मैं न था

मोमिन ख़ाँ मोमिन




है किस का इंतिज़ार कि ख़्वाब-ए-अदम से भी
हर बार चौंक पड़ते हैं आवाज़-ए-पा के साथ

मोमिन ख़ाँ मोमिन




है कुछ तो बात 'मोमिन' जो छा गई ख़मोशी
किस बुत को दे दिया दिल क्यूँ बुत से बन गए हो

मोमिन ख़ाँ मोमिन




हम समझते हैं आज़माने को
उज़्र कुछ चाहिए सताने को

मोमिन ख़ाँ मोमिन




हो गए नाम-ए-बुताँ सुनते ही 'मोमिन' बे-क़रार
हम न कहते थे कि हज़रत पारसा कहने को हैं

मोमिन ख़ाँ मोमिन




हो गया राज़-ए-इश्क़ बे-पर्दा
उस ने पर्दे से जो निकाला मुँह

मोमिन ख़ाँ मोमिन




इतनी कुदूरत अश्क में हैराँ हूँ क्या कहूँ
दरिया में है सराब कि दरिया सराब में

मोमिन ख़ाँ मोमिन




कल तुम जो बज़्म-ए-ग़ैर में आँखें चुरा गए
खोए गए हम ऐसे कि अग़्यार पा गए

मोमिन ख़ाँ मोमिन




किस पे मरते हो आप पूछते हैं
मुझ को फ़िक्र-ए-जवाब ने मारा

मोमिन ख़ाँ मोमिन