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तोड़ कर तार-ए-निगह का सिलसिला जाता रहा | शाही शायरी
toD kar tar-e-nigah ka silsila jata raha

ग़ज़ल

तोड़ कर तार-ए-निगह का सिलसिला जाता रहा

हैदर अली आतिश

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तोड़ कर तार-ए-निगह का सिलसिला जाता रहा
ख़ाक डाल आँखों में मेरी क़ाफ़िला जाता रहा

कौन से दिन हाथ में आया मिरे दामान-ए-यार
कब ज़मीन-ओ-आसमाँ का फ़ासला जाता रहा

ख़ार-ए-सहरा पर किसी ने तोहमत-ए-दुज़दी न की
पाँव का मजनूँ के क्या क्या आबला जाता रहा

दोस्तों से इस क़दर सदमे उठाए जान पर
दिल से दुश्मन की अदावत का गिला जाता रहा

जब उठाया पाँव 'आतिश' मिस्ल-ए-आवाज़-ए-जरस
कोसों पीछे छोड़ कर मैं क़ाफ़िला जाता रहा