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हफ़ीज़ जालंधरी शायरी | शाही शायरी

हफ़ीज़ जालंधरी शेर

79 शेर

देखा जो खा के तीर कमीं-गाह की तरफ़
अपने ही दोस्तों से मुलाक़ात हो गई

हफ़ीज़ जालंधरी




चराग़-ए-ख़ाना-ए-दर्वेश हों मैं
इधर जलता अधर बुझता रहा हूँ

हफ़ीज़ जालंधरी




बुत-कदे से चले हो काबे को
क्या मिलेगा तुम्हें ख़ुदा के सिवा

हफ़ीज़ जालंधरी




भुलाई नहीं जा सकेंगी ये बातें
तुम्हें याद आएँगे हम याद रखना

हफ़ीज़ जालंधरी




बे-तअल्लुक़ ज़िंदगी अच्छी नहीं
ज़िंदगी क्या मौत भी अच्छी नहीं

हफ़ीज़ जालंधरी




दिल सभी कुछ ज़बान पर लाया
इक फ़क़त अर्ज़-ए-मुद्दआ के सिवा

हफ़ीज़ जालंधरी




ऐ मिरी जान अपने जी के सिवा
कौन तेरा है कौन मेरा है

हफ़ीज़ जालंधरी




ऐ 'हफ़ीज़' आह आह पर आख़िर
क्या कहें दोस्त वाह वा के सिवा

हफ़ीज़ जालंधरी




अहल-ए-ज़बाँ तो हैं बहुत कोई नहीं है अहल-ए-दिल
कौन तिरी तरह 'हफ़ीज़' दर्द के गीत गा सके

हफ़ीज़ जालंधरी