अब मैं हुदूद-ए-होश-ओ-ख़िरद से गुज़र गया 
ठुकराओ चाहे प्यार करो मैं नशे में हूँ
गणेश बिहारी तर्ज़
अहल-ए-दिल के वास्ते पैग़ाम हो कर रह गई 
ज़िंदगी मजबूरियों का नाम हो कर रह गई
गणेश बिहारी तर्ज़
ऐ गर्दिशो तुम्हें ज़रा ताख़ीर हो गई 
अब मेरा इंतिज़ार करो मैं नशे में हूँ
गणेश बिहारी तर्ज़
अर्ज़-ए-दकन में जान तो दिल्ली में दिल बनी 
और शहर-ए-लखनऊ में हिना बन गई ग़ज़ल
गणेश बिहारी तर्ज़
बज़्म-ए-याराँ है ये साक़ी मय नहीं तो ग़म न कर 
कितने हैं जो मय-कदा बर-दोश हैं यारों के बीच
गणेश बिहारी तर्ज़
'दाग़' के शेर जवानी में भले लगते हैं 
'मीर' की कोई ग़ज़ल गाओ कि कुछ चैन पड़े
गणेश बिहारी तर्ज़
दिल-ए-ग़म-ज़दा पे गुज़र गया है वो हादसा कि मिरे लिए 
न तो ग़म रहा न ख़ुशी रही न जुनूँ रहा न परी रही
गणेश बिहारी तर्ज़
पत्थरों के देस में शीशे का है अपना वक़ार 
देवता अपनी जगह और आदमी अपनी जगह
गणेश बिहारी तर्ज़
रात की रात बहुत देख ली दुनिया तेरी 
सुब्ह होने को है अब 'तर्ज़' को सो जाने दे
गणेश बिहारी तर्ज़

