माहौल साज़गार करो मैं नशे में हूँ 
ज़िक्र-ए-निगाह-ए-यार करो मैं नशे में हूँ 
ऐ गर्दिशो तुम्हें ज़रा ताख़ीर हो गई 
अब मेरा इंतिज़ार करो मैं नशे में हूँ 
मैं तुम को चाहता हूँ तुम्हीं पर निगाह है 
ऐसे में ए'तिबार करो मैं नशे में हूँ 
ऐसा न हो कि सख़्त का हो सख़्त-तर जवाब 
यारो सँभल के वार करो मैं नशे में हूँ 
अब मैं हुदूद-ए-होश-ओ-ख़िरद से गुज़र गया 
ठुकराओ चाहे प्यार करो मैं नशे में हूँ 
ख़ुद 'तर्ज़' जो हिजाब में हो उस से क्या हिजाब 
मुझ से निगाहें चार करो मैं नशे में हूँ
        ग़ज़ल
माहौल साज़गार करो मैं नशे में हूँ
गणेश बिहारी तर्ज़

