कान पड़ती नहीं आवाज़ कोई
दिल में वो शोर बपा है अपना
बाक़ी सिद्दीक़ी
इस बदलते हुए ज़माने में
तेरे क़िस्से भी कुछ पुराने लगे
बाक़ी सिद्दीक़ी
हो गए चुप हमें पागल कह कर
जब किसी ने भी न समझा हम को
बाक़ी सिद्दीक़ी
हर याद हर ख़याल है लफ़्ज़ों का सिलसिला
ये महफ़िल-ए-नवा है यहाँ बोलते रहो
बाक़ी सिद्दीक़ी
हर नए हादसे पे हैरानी
पहले होती थी अब नहीं होती
बाक़ी सिद्दीक़ी
हम कि शोला भी हैं और शबनम भी
तू ने किस रंग में देखा हम को
बाक़ी सिद्दीक़ी
हाए वो बातें जो कह सकते नहीं
और तन्हाई में दोहराते हैं हम
बाक़ी सिद्दीक़ी
एक पल में वहाँ से हम उट्ठे
बैठने में जहाँ ज़माने लगे
बाक़ी सिद्दीक़ी
एक दीवार उठाने के लिए
एक दीवार गिरा देते हैं
बाक़ी सिद्दीक़ी