क्या पता हम को मिला है अपना
और कुछ नश्शा चढ़ा है अपना
कान पड़ती नहीं आवाज़ कोई
दिल में वो शोर बपा है अपना
अब तो हर बात पे होता है गुमाँ
वाक़िआ कोई सुना है अपना
हर बगूले को है निस्बत हम से
दश्त तक साया गया है अपना
ख़ुद ही दरवाज़े पे दस्तक दी है
ख़ुद ही दर खोल दिया है अपना
दिल की इक शाख़-ए-बुरीदा के सिवा
चमन-ए-दहर में क्या है अपना
कोई आवाज़ कोई हंगामा
क़ाफ़िला रुकने लगा है अपना
अपनी आवाज़ पे चौंक उठता है
दिल में जो चोर छुपा है अपना
कौन था मद्द-ए-मुक़ाबिल 'बाक़ी'
ख़ुद पे ही वार पड़ा है अपना
ग़ज़ल
क्या पता हम को मिला है अपना
बाक़ी सिद्दीक़ी