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अज़ीज़ नबील शायरी | शाही शायरी

अज़ीज़ नबील शेर

15 शेर

चाँद तारे इक दिया और रात का कोमल बदन
सुब्ह-दम बिखरे पड़े थे चार सू मेरी तरह

अज़ीज़ नबील




चुपके चुपके वो पढ़ रहा है मुझे
धीरे धीरे बदल रहा हूँ मैं

अज़ीज़ नबील




गुज़र रहा हूँ किसी ख़्वाब के इलाक़े से
ज़मीं समेटे हुए आसमाँ उठाए हुए

अज़ीज़ नबील




हम क़ाफ़िले से बिछड़े हुए हैं मगर 'नबील'
इक रास्ता अलग से निकाले हुए तो हैं

अज़ीज़ नबील




किसी से ज़ेहन जो मिलता तो गुफ़्तुगू करते
हुजूम-ए-शहर में तन्हा थे हम, भटक रहे थे

अज़ीज़ नबील




मैं छुप रहा हूँ कि जाने किस दम
उतार डाले लिबास मुझ को

अज़ीज़ नबील




मैं किसी आँख से छलका हुआ आँसू हूँ 'नबील'
मेरी ताईद ही क्या मेरी बग़ावत कैसी

अज़ीज़ नबील




मुसाफ़िरों से कहो अपनी प्यास बाँध रखें
सफ़र की रूह में सहरा कोई उतर चुका है

अज़ीज़ नबील




न जाने कैसी महरूमी पस-ए-रफ़्तार चलती है
हमेशा मेरे आगे आगे इक दीवार चलती है

अज़ीज़ नबील