'नबील' ऐसा करो तुम भी भूल जाओ उसे
वो शख़्स अपनी हर इक बात से मुकर चुका है
अज़ीज़ नबील
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'नबील' इस इश्क़ में तुम जीत भी जाओ तो क्या होगा
ये ऐसी जीत है पहलू में जिस के हार चलती है
अज़ीज़ नबील
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फिर नए साल की सरहद पे खड़े हैं हम लोग
राख हो जाएगा ये साल भी हैरत कैसी
अज़ीज़ नबील
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सारे सपने बाँध रखे हैं गठरी में
ये गठरी भी औरों में बट जाएगी
अज़ीज़ नबील
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तमाम शहर को तारीकियों से शिकवा है
मगर चराग़ की बैअत से ख़ौफ़ आता है
अज़ीज़ नबील
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वो एक राज़! जो मुद्दत से राज़ था ही नहीं
उस एक राज़ से पर्दा उठा दिया गया है
अज़ीज़ नबील
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