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बिखेरता है क़यास मुझ को | शाही शायरी
bikherta hai qayas mujhko

ग़ज़ल

बिखेरता है क़यास मुझ को

अज़ीज़ नबील

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बिखेरता है क़यास मुझ को
समेट लेती है आस मुझ को

मैं छुप रहा हूँ कि जाने किस दम
उतार डाले लिबास मुझ को

दिखा गई है सराब सारे
बस एक लम्हे की प्यास मुझ को

मैं मिल ही जाऊँगा ढूँड लीजे
यहीं कहीं आस-पास मुझ को

जो तुम नहीं हो तो लग रहा है
हर एक मंज़र उदास मुझ को