बिखेरता है क़यास मुझ को
समेट लेती है आस मुझ को
मैं छुप रहा हूँ कि जाने किस दम
उतार डाले लिबास मुझ को
दिखा गई है सराब सारे
बस एक लम्हे की प्यास मुझ को
मैं मिल ही जाऊँगा ढूँड लीजे
यहीं कहीं आस-पास मुझ को
जो तुम नहीं हो तो लग रहा है
हर एक मंज़र उदास मुझ को
ग़ज़ल
बिखेरता है क़यास मुझ को
अज़ीज़ नबील