बराबर एक से मिस्रा नज़र आते हैं अबरू के
तवारुद कहिए या है एक में मज़मून चोरी का
अरशद अली ख़ान क़लक़
बना कर तिल रुख़-ए-रौशन पर दो शोख़ी से से कहते हैं
ये काजल हम ने यारा है चराग़-ए-माह-ए-ताबाँ पर
अरशद अली ख़ान क़लक़
गर्दिश में साथ उन आँखों का कोई न दे सका
दिन रह गया कभी तो कभी रात रह गई
अरशद अली ख़ान क़लक़
बा'द मेरे जो किया शाद किसी को तो कहा
हम को इस वक़्त वो नाशाद बहुत याद आया
अरशद अली ख़ान क़लक़
अपने बेगाने से अब मुझ को शिकायत न रही
दुश्मनी कर के मिरे दोस्त ने मारा मुझ को
अरशद अली ख़ान क़लक़
ऐ परी-ज़ाद जो तू रक़्स करे मस्ती में
दाना-ए-ताक हर इक पाँव में घुंघरू हो जाए
अरशद अली ख़ान क़लक़
ऐ बे-ख़ुदी-ए-दिल मुझे ये भी ख़बर नहीं
किस दिन बहार आई मैं दीवाना कब हुआ
अरशद अली ख़ान क़लक़
अगर न जामा-ए-हस्ती मिरा निकल जाता
तो और थोड़े दिनों ये लिबास चल जाता
अरशद अली ख़ान क़लक़
अगर न जामा-ए-हस्ती मिरा निकल जाता
तो और थोड़े दिनों ये लिबास चल जाता
अरशद अली ख़ान क़लक़