अदा से देख लो जाता रहे गिला दिल का
बस इक निगाह पे ठहरा है फ़ैसला दिल का
अरशद अली ख़ान क़लक़
आलम-ए-पीरी में क्या मू-ए-सियह का ए'तिबार
सुब्ह-ए-सादिक़ देती है झूटी गवाही रात की
अरशद अली ख़ान क़लक़
जब हुआ गर्म-ए-कलाम-ए-मुख़्तसर महका दिया
इत्र खींचा यार के लब ने गुल-ए-तक़रीर का
अरशद अली ख़ान क़लक़
ख़ुदा-हाफ़िज़ है अब ऐ ज़ाहिदो इस्लाम-ए-आशिक़ का
बुतान-ए-दहर ग़ालिब आ गए हैं का'बा-ओ-दिल पर
अरशद अली ख़ान क़लक़
ख़त में लिक्खी है हक़ीक़त दश्त-गर्दी की अगर
नामा-बर जंगली कबूतर को बनाना चाहिए
अरशद अली ख़ान क़लक़
ख़रीदारी-ए-जिंस-ए-हुस्न पर रग़बत दिलाता है
बना है शौक़-ए-दिल दल्लाल बाज़ार-ए-मोहब्बत का
अरशद अली ख़ान क़लक़
ख़फ़ा हो गालियाँ दो चाहे आने दो न आने दो
मैं बोसे लूँगा सोते में मुझे लपका है चोरी का
अरशद अली ख़ान क़लक़
करो तुम मुझ से बातें और मैं बातें करूँ तुम से
कलीम-उल्लाह हो जाऊँ मैं एजाज़-ए-तकल्लुम से
अरशद अली ख़ान क़लक़
करेंगे हम से वो क्यूँकर निबाह देखते हैं
हम उन की थोड़े दिनों और चाह देखते हैं
अरशद अली ख़ान क़लक़