गुलगश्त-ए-बाग़ को जो गया वो गुल-ए-फ़रंग
ग़ुंचे सलाम करते थे टोपी उतार के
अरशद अली ख़ान क़लक़
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घाट पर तलवार के नहलाईयो मय्यत मिरी
कुश्ता-ए-अबरू हूँ मैं क्या ग़ुस्ल-ख़ाना चाहिए
अरशद अली ख़ान क़लक़
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