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अमीर क़ज़लबाश शायरी | शाही शायरी

अमीर क़ज़लबाश शेर

33 शेर

मैं ने क्यूँ तर्क-ए-तअल्लुक़ की जसारत की है
तुम अगर ग़ौर करोगे तो पशीमाँ होगे

अमीर क़ज़लबाश




मैं क्या जानूँ घरों का हाल क्या है
मैं सारी ज़िंदगी बाहर रहा हूँ

अमीर क़ज़लबाश




लोग जिस हाल में मरने की दुआ करते हैं
मैं ने उस हाल में जीने की क़सम खाई है

अमीर क़ज़लबाश




क्या गुज़रती है मिरे बाद उस पर
आज मैं उस से बिछड़ कर देखूँ

अमीर क़ज़लबाश




कुछ तो अपनी ख़बर मिले मुझ को
मेरे बारे में कुछ कहा करना

अमीर क़ज़लबाश




ख़ाली हाथ निकल घर से
ज़ाद-ए-सफ़र हुश्यारी रख

अमीर क़ज़लबाश




जश्न-ए-बहार-ए-नौ है नशेमन की ख़ैर हो
उट्ठा है क्यूँ चमन में धुआँ रौशनी के साथ

अमीर क़ज़लबाश




इतना बेदारियों से काम न लो
दोस्तो ख़्वाब भी ज़रूरी है

अमीर क़ज़लबाश




इक परिंदा अभी उड़ान में है
तीर हर शख़्स की कमान में है

अमीर क़ज़लबाश